70वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड सेरेमनी में ‘गुलमोहर’ को बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड मिला है। ये फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म हॉटस्टार पर रिलीज हुई थी। इस फिल्म में मनोज बाजपेयी ने लीड रोल प्ले किया है। वहीं राहुल वी. चिट्टेला फिल्म के डायरेक्टर हैं। इस जीत के बाद दोनों ने दैनिक भास्कर से बातचीत की है। नेशनल अवॉर्ड जीतने पर कैसे महसूस हो रहा है?
मनोज- बहुत बुरा लग रहा है कि नेशनल अवॉर्ड दे दिया, लेकिन मजाक साइड में रखते हुए सच कहूं तो जितना अच्छा लग रहा है, उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता। जब से यह खबर मिली है, तब से लेकर आज तक सभी के चेहरे पर बस मुस्कान ही है। राहुल- बहुत खुशी है और जैसा कि मनोज जी ने कहा कि जब हमने इकट्ठे मिलकर फिल्म बनाईं और उसे रिलीज की, तब हमने कभी ढिंढोरा नहीं पीटा कि तुम्हें ये करना है और तुम्हें वो। फिल्म बनाकर हमने लोगों के सामने रख दी और सब ने इस फिल्म को काफी पसंद भी किया। इतना सारा प्यार मिला। आप दोनों को क्या लगता है कि फैमिली ड्रामा फिल्म्स और बननी चाहिए?
राहुल- मेरे ख्याल से अच्छी फिल्म बननी चाहिए, चाहे वो किसी भी जॉनर में बने। फैमिली ड्रामा हो, एक्शन हो, क्राइम हो या रोमांटिक ड्रामा हो, बस अच्छी फिल्म होनी चाहिए। तो अच्छा काम करते रहें और अच्छी फिल्में बनाते रहें। फिर लोग उसे देखते रहेंगे। मनोज- मैं ‘गुलमोहर’ को फैमिली फिल्म कहता ही नहीं हूं। यह एक ऐसी फिल्म है जिसे सब देख सकते हैं। ये एक अच्छी कहानी है। यह फिल्म जाति व्यवस्था के बारे में बात करती है, अंतर-धार्मिक संघर्ष के बारे में भी बात करती है। इस कहानी के माध्यम से बहुत सी चीजों के बारे में बात हो रही है, अगर इसे सिर्फ एक फैमिली फिल्म होने तक सीमित रखा जाए तो यह सही नहीं होगा। आप फिल्म से कैसे जुड़े थे?
मनोज- मुझे स्क्रिप्ट में कोई एक बात खास नहीं लगी, बल्कि स्क्रिप्ट पूरी तरह से अच्छी लगी। क्योंकि ये एक ऐसी फिल्म है जिसमें सिर्फ मेरा किरदार ही नहीं बल्कि सारे किरदार एक-दूसरे पर डिपेंड कर रहे हैं। एक एक्टर को थोड़ा सा भी खिसका दो तो फिल्म अधूरी लगेगी। इसकी कहानी मुझे बैलेंस्ड लगी थी। ये फिल्म सारे तरीके के मुद्दों को भी कहती है। जो न सिर्फ हमारे समय की बात कर रहीं है बल्कि पिछले दिनों की भी बात कर रही है। ये इस फिल्म की ताकत है। दर्शकों को आज के दौर में क्या पसंद आ रहा?
मनोज- सिर्फ एक फिल्म। चाहे आप फिल्म किसी भी सब्जेक्ट पर बनाओ। एक अच्छी फिल्म, अच्छी स्क्रिप्ट का होना फिल्म के लिए बेहद जरूरी है। इससे ये बात तय हो जाती है कि उस फिल्म का अंत बहुत अच्छा होता है, जैसा कि गुलमोहर के साथ हुआ। कोई भी अच्छी फिल्म हमेशा एक अच्छे अंत के साथ ही खत्म होती है। एक अच्छी फिल्म हमेशा जिंदा रहती है। अवॉर्ड देते समय क्या इस बात से फर्क पड़ता है कि फिल्म ओटीटी है या थिएटर रिलीज?
मनोज- ओटीटी या थिएटर का मतलब क्या होता है, इसकी मुझे समझ ही नहीं है। दरअसल फिल्म तो फिल्म है, फिल्म को गांव में एक पर्दा खींच कर भी दिखाया जा सकता है। हमारे स्कूल में ऑडिटोरियम में एक पर्दा लगा देते थे और प्रोजेक्टर से एक फिल्म चला दिया करते थे। फिल्म कहीं भी दिखाई जा सकती है। ‘गुलमोहर’ तो हमारे कितने ही वॉचमैन ने देख रखी है। अब फिल्म कहां देखी जाएगी इसके बारे में अब कोई बात नहीं कही जा सकती है बल्कि बात यह है कि वह फिल्म कैसी है। अब कंटेंट को किस तरह से देखते हैं?
मनोज- मैं आपको बता दूं कि राइटिंग रीढ़ की हड्डी है। इसी तरह से फिल्म नाटक है, जिसमें राइटिंग से सब कुछ शुरू होता है और खत्म होता है। राइटिंग के दो स्टेज होते हैं। एक है स्क्रिप्ट, स्क्रीनप्ले और डायलॉग। दूसरा मैं मानता हूं एडिटिंग। इन दोनों डिपार्टमेंट को बहुत सम्मान देना चाहिए।
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