मूवी रिव्यू- वेदा:जातिवाद पर बेस्ड फिल्म में कोई नयापन नहीं, स्क्रीनप्ले भी कमजोर, बिना सिर-पैर के एक्शन सीन से जॉन ने भी निराश किया

जॉन अब्राहम, शरवरी वाघ और अभिषेक बनर्जी स्टारर फिल्म ‘वेदा’ आज थिएटर में रीलीज हो गई है। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटा 31 मिनट है। दैनिक भास्कर ने इस फिल्म को 5 में से 2 स्टार रेटिंग दी है। फिल्म की कहानी क्या है? फिल्म की कहानी के राजस्थान के बाड़मेर की रहने वाली दलित परिवार की लड़की वेदा बरवा (शरवरी वाघ) की है, जिसका सपना बॉक्सर बनने का है। दूसरी तरफ कश्मीर में तैनात आर्मी मेजर अभिमन्यु सिंह कंवर (जॉन अब्राहम) अपने बड़े अफसर के मना करने के बावजूद भी एक आतंकी को मार देता है, जिसकी वजह से उसका कोर्ट मार्शल हो जाता है। वह बाड़मेर आता है और वेदा के स्कूल में ही बॉक्सिंग का असिस्टेंट कोच बन जाता है। वेदा का भाई एक ऊंची जाति की लड़की से प्यार करता है। लेकिन जब गांव में प्रधान जितेंद्र प्रताप सिंह (अभिषेक बनर्जी) को पता चलता है तो भरी पंचायत में वेदा के परिवार की खूब बेइज्जती करता है। प्रधान वेदा के भाई की हत्या भी कर देता है। अपनी आंखों के सामने भाई की दर्दनाक मौत देखकर वेदा भीतर से टूट जाती है। वह गलत के खिलाफ जंग लड़ने का फैसला करती है। गांव में हिंसा का नंगा नाच शुरू होता है। वेदा अभिमन्यु की शरण में आती है। अभिमन्यु कैसे उसे उस चक्रव्यूह से बचाता है? इसके लिए पूरी फिल्म देखनी पड़ेगी। स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है? जॉन अब्राहम अपनी सोलो हीरो वाली फिल्मों में एक ही तरह के एक्शन करते नजर आते हैं। चाहे वह उनकी फिल्म ‘रॉकी हैंडसम’ रही हो या फिर ‘रोमियो अकबर वाल्टर’ हो। वो हमेशा कम बोलते हैं और एक्शन ज्यादा करते हैं। फिल्म में उन्होंने निराश ही किया है। शरवरी का काम अच्छा है। मौजूदा दौर की अभिनेत्रियों में से बेहतर हैं। आगे चलकर अगर उनकी फिल्मों का चयन अच्छा रहा तो नंबर वन की दौड़ में शामिल हो सकती हैं। अभिषेक बनर्जी ने भी अच्छा काम किया है, लेकिन उनका किरदार उनके व्यक्तित्व से मेल नहीं खाता। आशीष विद्यार्थी ने जितेंद्र प्रताप सिंह के काका की भूमिका निभाई है, लेकिन जिस तरह के वो एक्टर हैं वैसा काम नहीं मिला। तमन्ना भाटिया का कैमियो अच्छा है। फिल्म का डायरेक्शन कैसा है? ऊंच-नीच, जात-पात पर सालों से कई फिल्में बन चुकी हैं। कहानी के नाम पर इस फिल्म में कुछ खास नयापन नहीं है। फिल्म की पथकथा कमजोर है। फिल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा सा बेहतर है, लेकिन सेकेंड हाफ बेहद कमजोर है। जरूरत से ज्यादा एक्शन सीन कहानी को कमजोर करते हैं। एक्शन सीन के बजाय इमोशन सीन पर थोड़ा सा और ध्यान देने की जरूरत थी। फिल्म के क्लाइमेक्स को जिस तरह से राजस्थान हाई कोर्ट में फिल्माया गया है, वह जस्टिफाई नहीं करता है। फिल्म का म्यूजिक कैसा है? फिल्म का म्यूजिक कुछ खास नहीं है। ‘होलिया में उड़े रे गुलाल’ के अलावा ऐसा कोई सॉन्ग नहीं जो याद रहे। फिल्‍म में मौनी राय पर फिल्माए आइटम सांग पर भी लोग नहीं थिरकते हैं। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी सामान्य है। फाइनल वर्डिक्ट, देखे या नहीं? इस विषय पर अब तक सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं। एक नीची जात के लड़के को ऊंची जात की लड़की से प्यार हो जाता है और फिर शुरू होता है एक खूनी खेल। फिर भी अगर आप फिल्म देखने का मन बना रहे हैं तो आपकी मर्जी।

Credit: Dainik Bhaskar

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