राइटर को डायरेक्टर के लिए नहीं, अपने लिए लिखना चाहिए:अनुराधा तिवारी बोलीं- प्रोड्यूसर सोचते हैं राइटिंग छोटा काम, इतने पैसे क्यों दूं

अनुराधा तिवारी बतौर स्क्रीनप्ले राइटर ‘पापा कहते हैं’, ‘राहुल’, ‘फैशन’, ‘जेल’, ‘हीरोइन’ जैसी फिल्मों समेत ‘जस्सी जैसी कोई नहीं’, ‘धूम मचाओ धूम’, ‘शरारत’, ‘जब लव हुआ’ और ‘एक हजारों में मेरी बहना है’ आदि 25 सीरियल लिख चुकी हैं। इनमें से ज्यादातर यूथ और बच्चों की कहानियां हैं। इन दिनों उनकी ‘रायसिंघानी वर्सेस रायसिंघानी’ के 102 एपिसोड की कहानी सोनी लिव पर स्ट्रीम होता है। अपनी जर्नी से लेकर ओटीटी में आने वाले बदलावों पर बतौर राइटर अनुराधा तिवारी ने दैनिक भास्कर से बात की.. मां-बाप ने मुझे बॉलीवुड वाली एबीसीडी पढ़ाई
मेरी पैदाइश बनारस में हुई और मैं पली-बढ़ी गोरखपुर में। मेरे माता-पिता को फिल्मों में बड़ी रुचि थी। वो मुझे बचपन में ही फिल्में दिखाने ले जाया करते थे। पढ़ने-लिखने में मेरी कोई रुचि ना देखी मेरी मिडिल क्लास मां को चिंता सताने लगी। उन्होंने मुझे पढ़ाने के लिए नया निकाला। वे फिल्मी मैग्जीन लेकर मुझे ए-फॉर अमिताभ बच्चन, बी-फॉर बॉबी, सी-फॉर चिंटू अंकल, डी-फॉर डब्बू अंकल पढ़ाने लगीं। मैं भी एक घंटे में ABCD सीख गई। प्रियंका गांधी की क्लासमेट रही, पोस्ट ग्रेजुएशन में गोल्ड मैडलिस्ट थी
पांच साल की उम्र में कविता लिखी, जो मैग्जीन में छपी। छठी कक्षा में पहली कहानी लिखी जो नंदन मैग्जीन में प्रकाशित हुई। आगे की पढ़ाई मैंने वेलहम गर्ल्स हाईस्कूल, देहरादून से पूरी की। यहां प्रियंका गांधी मेरी क्लासमेट थीं। इसके बाद लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली गई। यहां पर कॉलेज यूनियन प्रेसिडेंट भी रही। पोस्ट ग्रेजुएशन जामिया से किया, यहां गोल्ड मैडलिस्ट थी। दिल्ली से सीधे मुंबई आ गई। लाइफ में हर चीज किस्मत से हुई
बतौर लेखक पहली फिल्म ‘राहुल’ लिखी। इसके निर्देशक प्रकाश झा और प्रोड्यूसर सुभाष घई थे। लिखने के एवज में 50 हजार रुपए मिले थे। मेरे जीवन में बहुत सारी चीजें भाग्यवश होती हैं। मुझे मुंबई में पहला जॉब भी कुछ इसी तरह से मिला था। इसकी भी कहानी बड़ी मजेदार है। जामिया में पढ़ाई खत्म करके अगले दिन में मुंबई आ गई। मुझे बस इतना पता था कि प्लस चैनल में न्यू कमर्स को जॉब मिलता है। यह कंपनी अमित खन्ना और महेश भट्ट मिलकर चलाते थे। अमित खन्ना को लगा मैं जर्नलिस्ट अनुराधा सेन गुप्ता हूं
खैर, मुंबई आकर पीसीओ से प्लस चैनल में फोन लगाया। रिसेप्शनिस्ट ने मुझे अमित खन्ना जी से कनेक्ट करवा दिया। अमित खन्ना जी को लगा कि मैं अनुराधा सेन गुप्ता हूं, जो बहुत बड़ी जर्नलिस्ट हैं। उन्होंने बड़ी देर तक मुझे डांटा-फटकारा। फिर कहा कि शाम 5 बजे मिलने आ जाइए। मैं नई थी। मुंबई के ट्रैफिक का अंदाजा नहीं था, सो एक घंटा लेट पहुंची। सब कुछ गड़बड़ ही हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि जॉब मिलेगा या नहीं। अंदर पहुंची तो वहां मेरे लेफ्ट में अमित खन्ना खड़े थे और सामने महेश भट्ट साहब बैठे हुए थे। भट्‌ट साहब बोले- आपको काम मिल चुका है
अंदर घुसते ही भट्ट साहब ने अपनी स्टाइल में पूछा- ‘हू आर यू।’ मैंने कहा कि अनुराधा तिवारी। उन्होंने दूसरा सवाल किया- ‘क्या आपको काम आता है?’ मैंने कहा कि अपने काम में आसाधारण हूं। उसी वक्त उन्होंने कहा- ‘आपको काम मिल चुका है।’ इस तरह ऑफिस में घुसते ही मुझे काम मिल गया। भट्ट साहब ने कहा कि कल से काम पर आ जाइए। बहरहाल, मुझे एसोसिएट डायरेक्टर का जॉब मिला और मेरी पहली फिल्म ‘पापा कहते हैं’ रही। फिर डायरेक्टर से राइटर बनी
मुझे मुंबई आए सात साल हो गए थे। मेरी पहली फिल्म बनने की कगार पर थी। एक दिन हिमेश रेशमिया ने फोन करके कहा कि तुम टेलीविजन के लिए शो लिखो। उस समय वो टेलीविजन के बड़े प्रोड्यूसर हुआ करते थे। वो मुझे सोनी टीवी लेकर गए। भाग्यवश शो तो नहीं लिखा, पर सोनी टीवी ने मुझे दो साल के लिए काॅन्ट्रेक्ट में बांध दिया। यहां से राइटिंग का सिलसिला शुरू हुआ, जो आज तक कायम है। राइटर के काम में इंटरफेयर करना सबसे इजी
राइटर को तवज्जो न मिलने की वजह के बारे में मुझसे हर बार पूछा जाता है, पर हर बार मेरा अलग जवाब होता है। एक इंडस्ट्री का और एक राइटर का प्वाइंट ऑफ व्यू है। रिस्पॉन्सिबिलिटी दोनों तरफ से है। पहला इंडस्ट्री का प्वाइंट ऑफ व्यू यह है कि उन्हें लगता है कि राइटर के काम में इंटरफेयर करना सबसे इजी है। अब कोई चीज क्रिएटिव माइंड से सोचना किसी के लिए तुच्छ तो किसी के लिए बड़ी चीज भी हो सकती है। प्रोड्यूसर को लगता है राइटर को इतने पैसे क्यों दूं
प्रोड्यूसर को लगता है कि एक चीज जो कंप्यूटर पर लिखी जा रही है, इसके लिए इतने पैसे क्यों दे रहा हूं। उसे राइटिंग समझ में नहीं आती है। अब राइटर के नजरिए से देखें तो अक्सर राइटर अपने आपको थोड़ा दबाकर रखते हैं। चैनल या डायरेक्टर की बात को सुनना ही राइटर अपना काम मानते हैं। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। वेब सीरीज वाले भी फैमिली की तरफ जा रहे
आज इंडिया में बड़ी तादाद में फिल्म तो बन ही रही हैं, इसके बाद बड़ा नंबर टेलीविजन का है। ओटीटी के आने से टेलीविजन की सोच को थोड़ा अपग्रेड होना पड़ रहा है। अब वेब सीरीज वाले भी थोड़ा फैमिली स्टोरी की तरफ जा रहे हैं। आगे वेब और टेलीविजन की कहानी का मिश्रण होने वाला है। मेरी ज्यादातर मीटिंग ऐसे ही शो के बारे में हो रही हैं। आगे 30 एपिसोड होंगे या 60 एपिसोड होंगे, पर यह रास्ता लोगों को दिख चुका है।

Credit: Dainik Bhaskar

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