केरल हाईकोर्ट ने गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति के स्पर्म निकालकर क्रायोप्रिजर्व करने की मंजूरी दी है। उसकी 34 वर्षीय पत्नी ने कोर्ट में इसके लिए याचिका लगाई थी, ताकि वह असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (ART) की मदद से मां बन सके। दंपति के कोई संतान नहीं है। याचिकाकर्ता की दलील थी कि बीमार व्यक्ति सहमति देने की स्थिति में नहीं है। साथ ही उसकी स्थिति दिन प्रति दिन खराब होती जा रही है। इस पर कोर्ट ने 16 अगस्त को बीमार व्यक्ति की लिखित मंजूरी के बिना उसका स्पर्म निकालने की अनुमति दे दी। दरअसल, ART रेगुलेशन एक्ट के सेक्शन-22 में प्रावधान है कि ART से इलाज के लिए सभी पक्षो की लिखित मंजूरी जरूरी है। सभी पक्ष का मतलब पति और पत्नी से है। इसके अलावा स्पर्म या एग डोनेट करते समय भी लिखित सहमति देनी होती है। वकील बोला- देर की तो बुरा हो सकता है
महिला के वकील ने कोर्ट में कहा- महिला के पति की स्थिति ऐसी नहीं है कि उनकी लिखित सहमति ली जा सके। यदि मामले में और देर की गई तो कभी भी कुछ बुरा हो सकता है। इस पर जस्टिस वीजी अरुण ने अपने आदेश में कहा- ‘स्थिति और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि ऐसी स्थिति के लिए कोई स्पष्ट कानूनी प्रावधान नहीं है, मुझे लगता है कि याचिकाकर्ता (पत्नी) अंतरिम राहत की हकदार है।’ कोर्ट ने कहा- ‘इसलिए व्यक्ति के गैमेट्स (स्पर्म) निकालने और क्रायोप्रिजर्व करने की अनुमति दी जाती है। यह स्पष्ट किया जाता है कि गैमेट्स (स्पर्म) निकालने और प्रिजर्व करने के अलावा कोर्ट की मंजूरी के बिना कोई अन्य प्रक्रिया नहीं की जाएगी।’ पिछले साल ART की ऊपरी आयु सीमा में छूट दी थी
केरल हाईकोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में ART से संतान पाने की उम्र में छूट दी थी। कोर्ट ने उन केसों में छूट देने का अंतरिम आदेश दिया था जिसमें पत्नी की उम्र 50 साल या उससे कम हो और पति की उम्र 55 या 56 साल हो। दरअसल, ART एक्ट के सेक्शन 21(G) में प्रावधान है कि सिर्फ 21 साल से ज्यादा और 50 साल से कम उम्र की महिला को और 21 साल से ज्यादा और 55 साल से कम उम्र के पुरुष को ART सुविधाएं दी जा सकती हैं। अपने आदेश में जस्टिस देवन रामचंद्रन ने कानून में दंपति के लिए ऊपरी आयु सीमा को मनमाना कहा था। हालांकि, कानून में ऊपरी आयु सीमा को बरकरार रखा गया था। ये खबर भी पढ़ें… चाइल्ड पोर्न पर SC में फैसला सुरक्षित: केरल HC बोला था- अकेले देखना क्राइम नहीं सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (12 अगस्त) को चाइल्ड पोर्नोग्रॉफी से जुड़े एक मामले में सुनवाई की। लाइव लॉ के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें कहा गया था कि फोन में बच्चों से जुड़े पोर्न वीडियो को डाउनलोड करना अपराध नहीं होगा। पूरी खबर पढ़ें… केरल हाईकोर्ट बोला- व्यक्ति को एक धर्म से नहीं बांध सकते, यह संवैधानिक गारंटी है केरल हाईकोर्ट ने धर्म परिवर्तन से जुड़े एक मामले में सुनवाई की। इसमें कहा- एजुकेशन सर्टिफिकेट में जाति या धर्म परिवर्तन की मांग को इसलिए नहीं ठुकराया जाना चाहिए क्योंकि इसके लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। पूरी खबर पढ़ें…
Credit: Dainik Bhaskar