जुलाई महीने में रिटेल महंगाई घटकर 3.54% पर आ गई है। ये 59 महीने का निचला स्तर है। अगस्त 2019 में महंगाई 3.21% थी। वहीं जून महीने में महंगाई 5.08% रही थी। खाने-पीने की चीजों के दाम घटने से महंगाई घटी है। महंगाई अब RBI के 2-4% के टारगेट के भीतर है। अनाज, फल, सब्जी, दाल, मसालों के दाम घटने से खाद्य महंगाई दर 9.36% से घटकर 5.42% हो गई है। वहीं शहरी महंगाई भी महीने-दर-महीने आधार पर 4.39% से घटकर 2.98% पर आ गई है। ग्रामीण महंगाई 5.66% से घटकर 4.10% पर पहुंच गई है। जुलाई 2023 में खाद्य महंगाई 11.51% थी, अब 5.42% पर आई
महंगाई के बास्केट में लगभग 50% योगदान खाने-पीने की चीजों का होता है। इसकी महंगाई महीने-दर-महीने आधार पर 9.36% से घटकर 5.42% हो गई है। वहीं एक साल पहले जुलाई 2023 में खाद्य महंगाई 11.51% रही थी। यानी, सालाना आधार पर भी ये घटी है। सब्जियों की महंगाई दर जुलाई में 6.83% रही, जबकि जून में यह दर 29.32% थी। अनाज और दाल भारत के मुख्य आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसकी महंगाई घटकर 8.14% और 14.77% पर आ गई है। फ्यूल और लाइट की महंगाई भी घटी है। RBI ने इस वित्त वर्ष के लिए महंगाई अनुमान 4.5% रखा था
हाल ही में हुई मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की मीटिंग के दौरान RBI ने इस वित्त वर्ष के लिए अपने महंगाई अनुमान को 4.5% पर अपरिवर्तित रखा था। RBI गवर्नर ने कहा था- महंगाई कम हो रही है, लेकिन प्रोग्रेस धीमी और असमान है। भारत की महंगाई और ग्रोथ ट्रैजेक्टरी संतुलित तरीके से आगे बढ़ रही है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए सतर्क रहना महत्वपूर्ण है कि महंगाई टारगेट के अनुरूप हो। महंगाई कैसे प्रभावित करती है?
महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर से है। उदाहरण के लिए यदि महंगाई दर 6% है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य सिर्फ 94 रुपए होगा। इसलिए महंगाई को देखते हुए ही निवेश करना चाहिए। नहीं तो आपके पैसे की वैल्यू कम हो जाएगी। महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है?
महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वे ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी। इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी। CPI से तय होती है महंगाई
एक ग्राहक के तौर पर आप और हम रिटेल मार्केट से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI करता है। हम सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, CPI उसी को मापता है। कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मेन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 300 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।
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